पीरियड के दौरान ‘नर्क’ जैसे जिंदगी, गांव से बाहर कुरमा घरों में रहती हैं महिलाएं

आधुनिक भारत में आज भी सदियों पुराने रीति रिवाजों को माना जाता है और इनके नाम पर महिलाओं पर अत्याचार होता आया है. देश में महिलाओं की स्थिति कुछ खास नहीं सुधरी है. शहरी इलाकों को अगर छोड़ दें तो देश के ग्रामीण इलाकों आज भी पुरानी बंदिशों में बंधी हैं. खासकर आदिवासी इलाकों में महिलाओं की हालत बहुत ही दयनीय है
आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कदमताल कर रही हैं। बावजूद इसके मोहला मानपुर अम्बागढ़ चौकी जिले के अतिदुर्गम औंधी क्षेत्र में आज भी रूढ़िवादी परंपरा बरकरार है। इस परंपरा के चलते महिलाओं को यातनाएं झेलनी पड़ रही हैं। यहां महिलाओं को पीरियड्स के दौरान ऐसी यातना झेलनी पड़ती है, जिसे सुनकर कोई भी अवाक रह सकता है।
पीरियड में रहना होता है घर से बाहर
आदिवासियों की चली आ रही कुरीति, कुप्रथा इस आधुनिक दौर में भी बदस्तूर चली आ रही है। जिसमें महिलाओं को घर में रहना वर्जित किया गया है। पीरियड्स के दौरान महिलाएं अपने घर में भोजन नहीं पका सकती। इतना ही नहीं वह अपना घर छोड़कर गांव से बाहर बने एक झोपड़ीनुमा कुरमा घर में चली जाती हैं। इसी घर में रहकर महिलाएं और युवतियां पीरियड्स के दौरान अपने पांच से सात दिन बिताती हैं।
पीरियड्स के दौरान घर से बेदखल कर अलग कमरे में रखा जाता है। जिसे कुरमा घर कहा जाता है। गांव के बाहर मिट्टी से बने कुरमा घर में कोई सुविधा नहीं रहती है। सांप-बिच्छू अक्सर आसपास घूमते रहते हैं। आज भी इन सारे खतरों को झेलते हुए यहां की महिलाएं महीने के पांच से सात दिन व्यतीत करने के लिए मजबूर हैं।
जागरूकता अभियान भी नहीं आया काम
आदिवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए शासन प्रशासन द्वारा कई प्रकार की योजनाएं चलायी जा रही हैं। कुरमा घरों से महिलाओं को आजादी दिलाने के लिए शासन-प्रशासन के साथ ही एनजीओ ने जागरूकता अभियान चलाया। इसके साथ ही शिविर लगाकर बदलने का प्रयास किया। हालांकि ये अभियान भी रूढ़िवादी परम्परा और पंचों के फैसले नहीं बदल सका। आज भी महिलाएं इन कुरमा घरों में बिना सुविधा के रहने को मजबूर हैं।