Rahul Gandhi ; देर आए, दुरुस्त आये… देर से ही सही मानहानि मामले में दोषी पाए जाने के बाद अपनी लोकसभा सदस्यता और सरकारी बंगला गंवाने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस नेता…

राहुल गांधी अब कोर्ट की शरण में जाने का मन बना रहे हैं.
राहुल गांधी अब इस मामले में सूरत सेशंस कोर्ट अपील करेंगे और इस अवसर पर खुद भी उपस्थित रह सकते हैं. बता दें कि सूरत कोर्ट ने मानहानि मामले में 24 मार्च को राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए 2 साल की सजा सुनाई थी. उसके अगले दिन ही लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी गई थी. लगभग 10 दिनों के बाद राहुल गांधी कोर्ट इस मामले के खिलाफ अपील करेंगे, लेकिन राजनीतिक हलकों में यह सवाल किया जा रहा है कि राहुल गांधी ने सूरत कोर्ट में अपील करने के फैसले लेने में इतनी देरी क्यों की? क्या कांग्रेस राहुल गांधी की सदस्यता के बहाने मझधार में फंसी कांग्रेस को बाहर निकालने का सियासी खेल खेल रही थी?
बता दें कि कुछ दिन पहले ही कांग्रेस नेता पवन खेड़ा के मामले में कांग्रेस के नेता तत्काल ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और एक घंटे तक अंदर ही सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी पर स्टे ले लिया था, तो अब राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के मामले में कांग्रेस ने इतनी देर क्यों लगा दी है? जबकि राहुल गांधी लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैज़ल की तरह कोर्ट में अपील कर अपनी सदस्यता को बहाल करवाने के लिए तत्काल कदम उठा सकते थे? लेकिन कोर्ट की राह पर चलने में उन्होंने देरी की, तो इसके अपने सियासी मयाने हैं.
कोर्ट में जाने में देरी कांग्रेस को सोची-समझी रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी ने कहते हैं कि राहुल गांधी या कांग्रेस का कोर्ट में देरी से जाने का फैसला कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति है. इस फैसले के बाद कांग्रेस देखो और इंतजार करो की नीति अपनाया था. वह यह देखना चाहती थी कि इस फैसले की क्या राजनीतिक प्रतिक्रिया होती है और अब जब पूरे देश में इस फैसले और मोदी सरकार के खिलाफ एक माहौल बनता दिख रहा है, तो कांग्रेस ने कोर्ट को रूख किया है. कांग्रेस पूरे देश के सामने यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा राहुल गांधी के करियर को समाप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है और कोर्ट के फैसले के बाद सरकार इसलिए इतनी जल्दी सक्रिय हो गयी और निश्चित रूप से कांग्रेस को इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा.
राहुल के नाम पर सहानुभूति बंटोरने की कांग्रेस की कोशिश
कांग्रेस की देरी को पिछले 10 दिनों में कांग्रेस की सियासी चाल से समझा जा सकता है. सूरत कोर्ट के फैसले के बाद ही से यह साफ हो गया था कि कानूनन राहुल गांधी की सदस्यता जानी तय थी, लेकिन कांग्रेस नेताओं ने तत्काल कोई पहल नहीं की. अगले दिन जब लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द करने की अधिसूचना जारी की, तो कांग्रेस नेताओं ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया. कोर्ट के फैसले को मोदी सरकार का फैसले को बताते हुए सदन के अंदर और बाहर लगातार विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. देश के अंदर और देश के बाहर इसे मोदी सरकार के तानाशाही कदम और प्रजातंत्र की गला को घोंटने वाला फैसला बताया गया. इस मुद्दे को सामने रखकर कांग्रेस के नेता पूरे देश में प्रदर्शन कर रहे हैं. काला कपड़ा पहन कर विरोध जता रहे हैं. कुल मिलाकर कांग्रेस ने सदस्यता रद्द होने को एक राजनीतिक अवसर के रूप में लिया और राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने की शहादत बताकर सहानुभूति बंटोरने की कोशिश कर रहे हैं.
विरोधी दलों को एकजुट करने और कांग्रेस की अंदरुनी टकराव पर लगी लगाम
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद देश की दूसरी विरोधी पार्टियां तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल लगातार राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती दे रहे थे, लेकिन राहुल गांधी की सदस्यता जाते ही चाहे ममता बनर्जी हो या फिर अरविंद केजरीवाल सभी ने एकसुर में इस फैसले का विरोध किया. संसद में कांग्रेस के नेतृत्व में होने वाली विरोधी पार्टियों की बैठक में शामिल नहीं होने वाले तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सांसद और नेता शामिल होने लगे. इस तरह से तृणमूल और आप जैसी पार्टियां जो राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठा रही थी. कुछ समय के लिए ही सही मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के साथ कंधा में कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार हो गयी है. इसके साथ ही मर्लिकार्जुन खरगे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस का एक बड़े खेमे में नाराजगी थी. राहुल की सदस्यता रद्द होने के बहाने कांग्रेस ने खरगे के नेतृत्व में आंदोलन के प्रस्ताव पर मुहर लगाने में और तेवर दिखा रहे दूसरे कांग्रेस नेताओं को शांत कराने में सफल रही है.
मोदी के टक्कर में राहुल को खड़ा करने की कवायद
ऐसा नहीं है कि कोर्ट द्वारा सजा सुनाने के बाद राहुल गांधी पहले सांसद हैं, जिनकी लोकसभा की सदस्यता गई हो, इसके पहले लालू प्रसाद यादव, बीजेपी विधायक विक्रम सैनी, मोहम्मद फैजल और आजम खान की भी सदस्यता गई थी, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस ने इसे राजनीतिक लाभ में बदलने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया है. कांग्रेस ने इसे कोर्ट के फैसले से ज्यादा मोदी सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मोदी सरकार के प्रजातांत्रिक विरोधी रवैये बताया. कांग्रेस ने राहुल गांधी को बेचारा के रूप में पेश करते हुए जनता के सामने गई कि उन्हें लोकसभा की सदस्यता इसलिए रद्द की गई है, क्योंकि वह अडानी और मोदी के संबंधों की बात कर रहे थे. मोदी और अडानी का विरोध कर रहे थे. अगले साल लोकसभा चुनाव हैं. राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा-2 की तैयारी कर रहे हैं और यह साफ हो गया है कि सदस्यता खारिज, अडानी के मुद्दे, प्रजातंत्र खतरे में है, जैसे मुद्दे को लेकर वह फिर से जनता के बीच जाएंगे और पीएम मोदी को चुनौती देंगे.